इस नजारे को देखे जमाना हुआ - by Dr. Sangamlal Tripathi "Bhanwar"


इस नजारे को देखे जमाना हुआ


वो जब से चमन में फिर आने लगे, 

मेरे गुलशन के गुल मुस्कुराने लगे, 

उनके पदचाप सुन कर कली खिल गईं, 

आज भँवरे भी खुलकर बुलाने लगे  ।


ये बसंती छटा क्या से क्या कर रही, 

हर कली फूल बनकर विहंस सी रही, 

आज पंक्षियाँ घूमती चहचहाती हुई, 

वो सुहाना समय देख कर हंस रहीं  ।


भोर की लालिमा दिख रही थी गगन , 

धड़कने बढ़ रही थीं हमारी चमन में  ,

घास पर आज शबनम बिछी दिख रही, 

खुशबू थी उस सुमन की महकता चमन  ।


उनका आना हुआ सब सुहाना हुआ, 

इतना समझो "भँवर" फिर दिवाना हुआ, 

देखता रह गया उनके उस रूप को, 

इस नजारे को देखे जमाना हुआ  ।।

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