पक्षी सारे (बाल कविता) - by Surendra Dutt Semalty
पक्षी सारे (बाल कविता)
देखो तो ये पक्षी सारे ,
कितने अच्छे और प्यारे !
सबके अपने - अपने गुण ,
होते जिनमें सभी निपुण ।
रंगीन पंखों वाला मोर ,
जब देखता घटा घनघोर ।
करता नृत्य पंख पसार ,
अक्सर सावन में हरबार ।
चाँदनी रात में पक्षी चकोर ,
निहारता है चाँद की ओर ।
कोयल गाकर मीठा गान ,
सदा बढा़ती अपना मान ।
कबूतर सदा लाता था पत्र ,
उड़कर जाता था सर्वत्र ।
तोता पिंजरे में होकर बन्द ,
बनता है लोगों की पसन्द ।
राम बोलता भाग्य बतलाता ,
जो मिलता उसको है खाता ।
देखो तो ये गिद्ध और चील ,
हर दिन जाते कई सौ मील ।
धरती का प्रदूषण मिटाते ,
मरे जानवरों को हैं खाते ।
पितृ पक्ष में कौवा आकर ,
संदेशा ले जाता खाकर ।
सुनकर पितृ होते प्रसन्न ,
फिर देते सबको अन्न - धन ।
नीर- क्षीर जो विवेकी हंस ,
बनें न कोई उसके कंस ।
पपीहा पानी - पानी पुकारे ,
रास न इसको कुयें - धारे !
स्वाति नक्षत्र बूँद को तरसे ,
तभी पीता है जब वह बरसे ।
बतख हंस बगुला जलचर ,
पंखों पर मोहित होता है हर ।
मुर्गे घुघुति सारस मोनाल ,
सबकी अपनी-अपनी चाल ।
गौरैया हिलांस कटफोडा़ ,
और भी वंश है लंबा-चौड़ा ।
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