पंछी - by Swayam Prabha Mishra


पंछी


तू कौन रे पंछी कहां से आया 

तेरा कहाँ बसेरा ।


मुक्त गगन का ही तू प्राणी

मुक्त है तेरा डेरा ।


भटक रहा क्यों भ्रम- माया में

अपना पंख पसारे ।


कौन तेरा है तू है किसका

उड़ता बिना सहारे ।


आज यहाँ कल वहाँ भटकता

क्या है ध्येय तुम्हारा ।


मंजिल कभी ना तू पायेगा 

दरिया का दूर किनारा ।


पल-भर रुक कर किसी डाल पर

अपने को पहचान ।


सीमाहीन छितिज की रेखा

पगले तू अन्जान ।


सारे जग की अन्नत पीर

तु समेट ले मन में ।


मंजिल तेरी निर्विकार है ।

उड़जा मुक्त गगन में ।

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