परमार्थ - by Dr. Ramesh Chand Sharma


परमार्थ


स्वार्थ का भाव त्यागकर, परमार्थ को जीवन में अपनाएँ, 

नदियाँ जल सेवन कभी न करें, वृक्ष न स्वयं फल खाएँ।


सूरज, चंदा, धूप, हवा सब परहित है कार्य में सदा लीन,

हम सब को भी बनकर परमार्थी, रहना चाहिए कर्म लीन।

 

हमारी सभ्यता एवं संस्कृति का मूलाधार है यह परमार्थ,

संरक्षण अपनी परंपराओं का करें हम व छोड़ें भाव स्वार्थ।


परमार्थ में भी सदा रखे हम, अपने अहं भाव का अभाव, 

चाह न मान सम्मान की रहे हो निष्काम, निस्वार्थ भाव।


स्मरण रहे, जीवन हमारा है किसी के काम आने के लिए, 

परमार्थ का आश्रय लेकर, मुकाम अपना परं पाने के लिए।


क्षणभंगुर जीवन में, हम वट के वृक्ष का रूप करे धारण,

दुःख रूपी तपती गर्मी में,हम बने सबकी छाया का कारण।


वैभव की कामना बुरी नहीं, दीन दुःखी की सेवा करें हम,

अर्थ के स्वार्थ में, परमार्थ का त्याग कदापि करे न हम।


मर कर भी जीवित रखता है जगत में, परमार्थ का भाव, 

परमार्थवाद,पदार्थवाद से श्रेष्ठ है, मन में जगाए ये भाव।

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