प्रकृति का सन्देश - by Nand Kumar


प्रकृति का सन्देश


दे रहा नित है हमें संदेश,

कण कण प्रकृति का।

समझकर माने जो हम,

रुक नाश जाए सृष्टि का ।।


वृक्ष दे फल फूल वायु ,

छांव श्रम हरती सभी का।

बांट खुशियां खुश रहो, 

बस है यही सन्देश उनका ।।


क्षीर अरु मिल नीर बनकर,

क्षीर यह बतला रहा ।

एक मिल हो जाए उसका,

भेद सब जाता रहा ।।


चांद लख उठती तरंगें,

दे रही सन्देश फिर फिर ।

देख प्रिय हर्षाए आए,

न ऐसा वक्त फिर फिर ।।


गुलाब खिल कांटों में,

हमको दे रहा सन्देश है ।

पथ विकट पर चाह उत्कट,

तो असम्भव कुछ नहीं है ।।


वेद की वाणी ऋचाएँ,

दे रही है ज्ञान हमको ।

सन्मार्ग पर चलते रहो, 

तो पाओगे निज लक्ष्य को ।।

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