रख संतुलन आगे बढ़ - by Sarita Singh
रख संतुलन आगे बढ़
रख संतुलन आगे बढ़ मत हो किंचित भी संकित
विश्वास मन का मत ठंडा कर मिटा दे मन का डर ।।
चल बड़ आगे धीर पुरुष आंधियों से नहीं हारते ।।
हार जाए यदि एक बार तो मन को नहीं मारते।
लेते ठान जो करते वही अडिग विश्वास लेकर चल ।।
है अगर अमावस्या तो पूर्णिमा भी आएगी निश्चितकल
आंधियों से न विचल जब तक लहू जिगर में चल।
मन हार गया तो क्या जीता, जीत कर मिसाल बन।
बदल तू नसीब राह बाधा मिटा काले अंधेरे तम हटा।
रोता क्यों बेहाली पे दिन बदलेगा कमी को शक्ति बना
आत्मशक्ति के जुगनू लेे संग बढ़ ,अंधेरे में चमक।
मरुस्थल भी महकेंगे फूल इत्र गुलाब बन तू महक।
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