सरस्वती वंदना (Saraswati Vandana) - by S.P. Dixit


सरस्वती वंदना


माँ  ज्ञान  की   ज्योति  जला दो, 

करो  तिरोहित  अज्ञानता - तम।

तुम   विद्या-- ज्ञान - -कला देवी, 

दिखाओ प्रकाश-- पथ अनुपम।।


शुभ्र-वस्त्र-स्निग्ध-कमल  आसन, 

कर वीणा-पुस्तक-माला-शोभित।

धन-शक्ति-ज्योति करती विकीर्ण, 

पूर्ण - ब्रह्मांड तेज से  आलोकित।।


हृत्तल  नव- स्वर्ण - ज्योति  भरो, 

कर  दो  तविषि का  दूर  तिमिर।

मिटा   दो माँ  जीवन-- व्युत्क्रम, 

अंतस - विषाद मेघ न पायें घिर।।


हे वीणा वादिनी, हे माँ सरस्वती, 

दैदीप्यमान  कर  दो उर- आंगन।

सत्यम- शिवम - सुंदरम स्वरूपा, 

मिटा  व्यथा, करो   हर्षित   मन।।


हे विद्या प्रदायिनी हे हंस वाहिनी, 

मधु - हर्ष वीणा स्वर करो झंकृत।

हे ब्राह्मी- महाभद्रा, हे सुरवंदिता, 

दिखाओ  ज्ञान का उज्ज्वल-पथ।।


तुम हर्ष-विवेक--सद्बुद्धि दायक, 

जीवन - उपवन शुचि-सुरभि भरो।

हे वाग्देवी, हे वरारोहा, हे  वाराही, 

माँ   अकिंचन  पर उपकार  करो।।




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