सूरज - by Beliram Kanswal


सूरज


हरे तम वो  सदा जग का, कि देता  रोशनी  सबको।
नियत आकर सिखाता है,समय पालन सदा हमको। 
सदा वह भोर में  आकर,  हरे  घनघोर  है  तम  को।
तिमिर को दूर कर देता, दिखाए  राह  नित  हमको।।

किए तुम चाँद को रोशन ,तुम्हीं  से  चाँदनी  प्यारी।
सुहानी  भोर  तुम  लाते ,  धरा  पर  रोशनी  सारी।
दिवस तुमसे निशा तुमसे, तुम्हीं  संध्या  सबेरा  हो।
तुम्हीं से शीत  गर्मी भी , सदा नभ में कि  डेरा  हो।। 

नहीं कोई कभी बाधा, कि  तुमको  रोक  पाई  है।
चले अनथक गगन में तुम,कि धीरजता दिखाई है।
कभी बादल  रुकावट बन,कि  तुम  से बैर लेते हैं। 
नहीं टिकते  सदा  मिटते, न अपनी  खैर  लेते  हैं।।

No comments

Powered by Blogger.