स्वार्थ - by Vrindavan Patel


स्वार्थ


स्वार्थ की दुनिया मे पग पग रखना कदम।

सिद्ध करने स्वार्थ को मिलेंगे लोग हरदम।

स्वार्थ के खातिरअपने करते मीठी बात।

हो जाती है पूरी तब करते भी नही मुलाकात।


 स्वार्थ के खातिर भी लोग कुछ भी कर गुजरते हैं।

कर लेते है पूरी तो बातों से अपनी मुकरते हैं।

पवित्र रिश्तेदारी भी आज स्वार्थ पर है टीकी।

बिना इसके नजदीकी रिश्तदारी भी है फीकी।


माइका ,ससुराल या हो ननिहाल।

स्वार्थ के कारण लगता जी जंजाल।

पिता न आता स्वार्थ बिना और न बेटी,

चलेगा कैसे मानवता और रिश्तों का मायाजाल।


स्वार्थ ने कर दिया है वश में पवित्र मित्रता।

बिना स्वार्थ के मित्र न बनते और न मित्रता।

मित्रता होती पावन गठबंधन,

पर स्वार्थ से न रह पाया अछूता।


स्वार्थ है एक जहर समान।

रहना  इससे  दूर  श्रीमान!

स्वार्थ में तो पशु जीते हैं,

मानव का नही ये गुण श्रीमान!


जीते तो सब स्वयं के लिये।

जीकर देखो कभी गैरों के लिये।

मिलेगी सन्तुष्टिऔर खुशियां अपार,

सार्थक होगा जीवन इंसानियत के लिये।


स्वार्थ है जहरीला विष समान।

रिश्तेदारी के वृक्ष को काटे दीमक समान।

छोड़ो स्वार्थ को अपनों के लिए,

होगी रिश्तेदारी दशरथ-जनक समान।

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