तेज उड़ो - by Saurabh Snehi
तेज उड़ो
चाहत होती है उड़ने की,
नभ के चांद सितारों तक।
सोचता हूँ उड़ने को जैसे,
उसी वक्त कयामत आती,
डराने को गिराने को,
मंजिल से दूर हटाने को।
तभी, तुफानौं से डर कर
घुटने के बल गिर जाते हैं।
हम अपनी चाहत भूलकर,
जमीं पर बैठ जाते हैं।
इन्ही कायरता के कारण,
हम असफल रह जाते हैं।
गर चाहते हो सच में उड़ना,
बादलों के उस पार तक।
तो, हौसले की पंख मजबूत करो,
अपनी चाहत को तेज करो।
तुफान तुम्हे जबतक छुए,
पहले ही उनसे तेज उड़ो।
बादलों को चीर कर,
मंजिल को हासिल करो।
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