रानी लक्ष्मीबाई - by Haridesh Sharma Anupam
रानी लक्ष्मीबाई
छाई जब गोरों की काली सत्ता,
सारा परिवेश था डोल उठा ।
खबर पाई जब लक्ष्मी ने ,
लक्ष्मी का गरम शोणित था खौल उठा ।
किया सिंघनाद अरु शंखनाद,
गोरों को ललकारा था ।
अभिमन्यु को छोड़ कर उपमा
खोज-खोज कवि हारा था ।
बलगाऐ दाँतों में दबी हुई ,
लक्ष्मी थी दुर्गा बनी हुई।
कहीं रूण्ड गिरे कहीं मुण्ड गिरे ,
बादल जिस ओर भी बढ़ता था ,
गोरों के झुंड के झुंड गिरे ।
केसरिया कृपाणो को
गोरों का रक्त पिलाती थी ।
रानी अरिदल को काट-काट
आगे को बढ़ती जाती थी।
है बेजोड़ पराक्रम लक्ष्मी का ,
जिन्हें क्रूर काल ने पहले ही बेजोड़ किया ।
नारी कोमल होती है इस भ्रम को
नारी ने ही तोड़ दिया ।
है धन्य तुम्हारी रण शैली ,
धन्य-धन्य तरुणाई है ।
तुम्हारे साहस के आगे ,
दिखती हिमगिरि मे बौनाई है ।
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