गाय - by Varsha Mishra
गाय
गाय माँ का देख हाल हृदय में उठा सवाल,
इसकी दशा का बोलो कौन ज़िम्मेदार है,,
कंठ में उठा क्रदन आत्मा करे रुदन,
हर एक शब्द मेरे लहू का उबाल है,,
जिसका कभी पिया दूध,उसकी भूले सुध-बुध,
बन बेसहारा देखो कांटो को चूमती है,,
जिसे दादा-दादी पालते थे प्रेम से सँभालते,
आज लाचार बन गलियों में घूमती है,,
आज लोग देख के भी आँखे को मूंद लेते हैं,
वो वैभवी विलासता का आनंद लेते हैं,,
मग़र आर्य भूल गए क्यों अपने स्वाभिमान को,
आन-बान शान गाय मान-सम्मान को,,
हाल इसका देख तंग,हृदय मेरा हुआ दंग,
गा रहा मेरे काव्य धर्म का मलाल है,,
गाय माँ का देख हाल हृदय में उठा सवाल,
इसकी दशा का बोलो कौन ज़िम्मेदार है,,
युग-युग से गाय आर्यों की पहचान थी,
घर में पूजी जाती देवी माँ के सामान थी,,
33 कोटि देवता विराजमान रहते थे,
प्रथम रोटी होती गऊ माता की कहते थे,,
बन कामधेनु वो भूख को मिटाती रही,
ममता की ठण्डी छांव दूध पिलाती रही,,
मग़र आज वो ही गाय भूख की शिकार है,
आत्म ग्लानि मुझे इंसान पर धिक्कार है,,
जिस घर में थी गाय बंधी
वहां बंशी श्याम बजाते थे,
गऊ माता की पूंछ पकड़ कर
बैतरणी तर जाते थे,,
समुद्र मंथन से देखो
जिस गौ माता का हुआ सृजन,
सानिध्य मिले गौ माता का तो
हो पावन ये मन उपवन,,
प्राणी तेरे पुण्य कर्म मोक्ष का द्वार है,
बिन पुण्य जीवन तो व्यर्थ बेकार है,
गाय माँ का देख हाल हृदय में उठा सवाल,
इसकी दशा का बोलो कौन ज़िम्मेदार है,,
फ़िरती है मारी-मारी जाऊं जाके बलिहारी,
कान्हां तो संग खेले बनके वो बनवारी,,
दूध पिलाया उन्हें माखन खिलाया उन्हें,
गाय संग बड़े हुए गोकुल के गिरधारी,,
आज व्यथा देखकर हृदय में एक जूनून है,
गाय माँ का दूध तो रगों में बहता खून है,,
तरस नहीं आए हाय कितना बुरा हाल है
पीड़ा देख इसकी मेरे मन में भूचाल है,
गाय माँ का देख हाल हृदय में उठा सवाल,
इसकी दशा का बोलो कौन ज़िम्मेदार है,,
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