चेतन मन का प्रवाह - by Dr. Nilima Ranjan
चेतन मन का प्रवाह
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यह चेतन मन का प्रवाह ,
अंतरंग ऊहापोह का निष्पत्तिहीन रह जाना,
अदेखा यथार्थ अथवा क्षणभंगुर यथार्थ का भ्रम?
गहन तीव्र क्षण, ओह!
मोहित करता जीवन,
पुष्प, रंग, तितली
प्रियजन, परिवार
मंत्रमुग्ध करते ।
और विपरीत स्वयं विस्मृत ।
चलता रहता है जीवन प्रवाह ।
कदम-कदम चढ़ती बढ़ती वय
अनचीन्हा अनजाना आज,
समक्ष लाता है नश्वरता प्रश्नचिन्ह सी,
आध्यात्म आ खड़ा होता है समक्ष
और प्रारंभ होता है
अभ्यंतर एकालाप, स्वगत संवाद,
असंख्य स्पर्शन, अध्येता से वार्तालाप का प्रयास ।
बहता रहता है चेतन मन का प्रवाह ।
झंझावत सा बहाव,
कर देता है विवश,
क्योंकि कौन होना चाहता है
बंजर भूमि सरीखा, अग्नि पाथर सा ?
कौन हो जाना चाहता है
परछत्ती सा- रिक्त, अज्ञात, उपेक्षित?
कोई नहीं चाहता
सर्द, तीव्र, नुकीली, झकझोरती शान्ति ।
सभी को दरकार है
शांति-
निराकार, अमूर्त,
माँ के आँचल से झाँकते शिशु सी,
अबोध, निश्छल
पक्षियों के कलरव सी,
तितलियों के पंखों सी
रपटती माछी सी ।
और यह चेतन मन का प्रवाह
ले जाता है मानस को
ऐसी ही अनजानी राहों पर
उलझनें सुलझाने को,
मानव बन उठ खड़े होने को।
वाह! यह चेतन क्रम ।
- डॉ० नीलिमा रंजन
भोपाल, मध्य प्रदेश
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