चिंतन - by Saket Ranjan Bharti

चिंतन

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काश!

एक ऐसा मुथूट होता,

जहाँ सुख दुःख तोले जाते।

मन की बैचेनी गिरवी रखते,

थोड़ी-सी हँसी ले आते।

जहाँ शब्दों का सम्मान नहीं,

वहाँ मन की बात क्या करना?

जहाँ भाव हृदय के चोटिल हों,

वहाँ क्या जीना?, क्या मरना?

हम अपशब्दों को गिरवी रखते,

शब्दों की गरिमा लाते।

काश! 

एक ऐसा.........

 यहाँ आस नहीं, विश्वास नहीं,

अपनेपन का एहसास नहीं।

अपनों की तकलीफों का,

क्यों होता किसी को आभास नहीं।

हम नफरत को गिरवी रखते,

अपनापन ले आते।

काश! 

एक ऐसा मुथुट होता...


- साकेत रंजन भारती

बेगूसराय, बिहार

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