दयालुता - by Mithilesh Tiwari "Maithili"
दयालुता
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देख पराई पीड़ा को भी
भरता जिसका अंर्तमन है ।
विह्वलता उन्मूलन की भी
बनाती उसको अंशुमन है ।।
दयालुता सतत् प्रवाहित
एक निर्मल भाव धारा है ।
कर समवत् समाहित
कितनों का जीवन सहारा है।।
दया व्याप्त जगत में
प्रकृति का सुचि संदेश है ।
और मानव सभ्यता में
संस्कृति का अनुपम उपदेश है।।
दिनकर स्वयं जलकर भी
देता जग को प्रकाश है ।
हिमकर तम से टकराकर भी
करता रोशन आकाश है ।।
वृक्ष स्वयं नहीं खाते फल
पीती नहीं नदियाँ जल है ।
धरती उपजाति नित फसल
पर सेवा में ही जीवन सफल है।।
जीवन मिला मानव का
जिसे इंसान स्वयं बनाना है।
संरक्षण हो प्रति जीव-जंतु का
मन में भाव दया का जगाना है।।
दे सकें निवाला भूखों को
ठिठुरे नहीं कोई सर्दी में है।
कर सकें सनाथ अनाथों को
अक्षुण रहे अस्मिता गर्दिश में है।।
बुजुर्गों का बनें सदा सहारा
करना मात-पिता की सेवा है।
अपनों से ना करें किनारा
ये तो सतकर्मों की मेवा है ।।
हो सर्व सुलभ प्रभूत दयालुता
ये श्रद्धा संवेग हमारा है ।
जागृत हो सच्ची मानवता
बनती फिर वो सर्व दुःखहारा है।।
- मिथिलेश तिवारी "मैथिली"
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
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