मत बाँध - by Md. Javed Saudagar


मत बाँध

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मैं ज़ुबाँ हूँ,

मुझे सरहदों में मत बाँध।

मेरे अल्फ़ाज़ बे-ज़ुबाँ हैं,

इन्हें लफ़्ज़ों में मत बाँध।।


ग़र बाँधना ही है तो,

फ़क़त कच्चे-धाग़ों में बाँध।

रिश्ते एहसासों के नाज़ुक़ हैं बहुत,

इन्हें बे-वजह ज़ंजीरों में मत बाँध।।


मैं हया हूँ,

मुझे लिबासों में मत बाँध।

मेरी निग़ाहें ब-हया हैं,

इन्हें हिजाबों में मत बाँध।।


मैं इल्म हूँ,

मुझे क़िताबों में मत बाँध,

मेरे उजाले बे-हिसाब हैं,

इन्हें चराग़ों में मत बाँध।।


मैं समंदर हूँ,

मुझे साहिलों में मत बाँध।

मेरे तूफ़ां बे-हिसाब हैं,

इन्हें मुट्ठीओं में मत बाँध।।


मैं फ़ितूर हूँ,

मुझे दिमाग़ों में मत बाँध।

मेरे मिजाज़ बे-शऊर हैं,

इन्हें जाहिलों में मत बाँध।।


मेरे अल्फ़ाज़ बे-ज़ुबाँ हैं,

इन्हें लफ़्ज़ों में मत बाँध।

मैं ज़ुबाँ हूँ,

मुझे सरहदों में मत बाँध।।


- मो० जावेद सौदागर

रीवा, मध्य प्रदेश

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