मेरा संयुक्त परिवार - by Chhaganlal Mutha


मेरा संयुक्त परिवार

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सब साथ है तो परिवार,गर बिखर गये तो पत्थर,

बात सुनाता हूं मैं अपनी,दिल पर रखकर पत्थर।


कितना सुन्दर था वो हमारा,भरा पुरा परिवार।

दादाजी की धाक थी ऐसी,जैसे कोई सरदार।


चाचा-चाची, मम्मी-पापा,भाई बहन कुल बीस।

रोज़ सवेरे सब बड़ों के,पैर छु कर ले आशीष।


खेती-बाड़ी बहुत हमारी,धन धान्य की भरमार।

गाय, भैंस, बैल कई हमारे,बहे घी दूध की धार।


कहीं भी जाना बैलगाड़ी से,नहीं ख़रीदीं कार।

काम करेगा वो ही जिसको,आज्ञा दे सरकार।


खाना सबका साथ में बनता,एक ही रसोईघर।

साथ बैठ सब मज़े से खा  ते,आपस में मिल कर।


भाई बहन सब मिलकर रहते,साथ में खेलें खेल।

नहीं कभी लड़ते झगड़ते ,इतना हम में था मेल।


सारे गांव में बड़ी इज्जत,बडी थी शाख हमारी।

कोई भी शुभ काम में पहले, दादाजी की सवारी।


बड़ा दिलदार  था,वो संयुक्त परिवार हमारा।

आज बिछड़ गये देश विदेश,यादों का हैं सहारा।


मुथा कोई जादू हो जाये,सब मिल जाये दोबारा।

काश!फिर एक हो जाये, बिछडा परिवार प्यारा।


- छगनलाल मुथा 

सान्डेराव, ऑस्ट्रेलिया

                

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