रुआब में रहो - by Md. Javed Saudagar


रुआब में रहो

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हक़ीक़त झूठी ही सही, 

पर ख़्वाब में रहो।

रुतबा हो ना हो,

पर रुआब में रहो।।


इश्क़, मुश्क़ या क़ाबिलीयत,

सभी महक़ते हैं।

ख़ुशबू हो ना हो,

पर क़िरदार में रहो।।


इक वबा ने हमें भी,

बा-नक़ाब कर दिया।

हया हो ना हो,

पर हिजाब में रहो।।


ख़्वाहिशें भी अपनी,

क्या ख़ूब हैं जनाब।

ख़ूबियाँ चाहे हों ना हों,

पर ख़िताब में रहो।।


अन ख़ुले पन्नो में बंद रहो,

पाक़ आयात की तरह।

कोई पढ़े ना पढ़े,

पर क़िताब में रहो।।


सर सज़दे में और,

दिल दग़ाबाज़ी में।

इबादत जैसी भी हो,

पर नमाज़ में रहो।।


हमारी हर शातिरग़र्दी का,

हिसाब-क़िताब है।

उस मालिक़ के पास,

कोई हिसाब ले ना ले यहाँ,

पर हिसाब में रहो।।


ख़ामोशियाँ भी अक़्सर,

हक़ीक़त की गवाह होती हैं "जावेद"।

जवाबदारी हो ना हो,

पर जवाब में रहो।।


हक़ीक़त झूठी ही सही,

पर ख़्वाब में रहो।

रुतबा हो ना हो,

पर रुआब में रहो।।


- मो० जावेद सौदागर

रीवा, मध्य प्रदेश

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