तुम्हें अंत तक लड़ना है - by Sanket Singh
तुम्हें अंत तक लड़ना है
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क्यों लाचार बैठा है?
सवाल तो उठेगा...
मन से हारे हुए का,
इतिहास कौन पढ़ेगा।
धधकने दो आग सीने में,
टाल आओ सारी बला।
नाम उसी के बने हैं,
जो भी है कीचड़ में खिला।
ख्वाहिशें जो तेरे हैं,
उसे पूरा तो करना है।
परिणाम का क्या सोचना?
तुम्हें अंत तक लड़ना है।
तोड़ दो नाते गम से अब,
थाम लो दामन मेहनत का।
देखना एक दिन सुबह होगी,
ओ बंदे! तेरी खुशियों का।
गम के चादर फेंककर,
चलो उठो फिर से बढ़ो।
आशाओं का दामन थाम,
तुम फिर से एक बार लड़ो।
- संकेत सिंह
सोनपेै-जमुई, बिहार
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