उड़ान - by Mithilesh Tiwari "Maithili"


उड़ान

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स्वप्न सुनहरे पंखों को,

खोल दिया आसमान मेंं ।

अब मिलें ठिकाना उनको,

मंजिल की ऊँची उड़ान में ।।


रोक सके ना कोई राहों को,

श्यामल घटा जहान में ।

मन के सतरंगी सपनों को,

देखें इंद्रधनुष के वितान में ।।


आसान नहीं जीना ख्वाबों को,

नहीं सहजता इस उत्थान में ।

कर बुलंद निज हौसलों को,

बढ़ना है आगे तूफान में ।।


ओस-कणों से कोमल शब्दों को,

मिले संजीवनी वरदान में ।

करें चंद्रिका रजत पुँज भावों को,

सुधा बरसे गीतों के सम्मान में ।।


तम हरते नभ के तारों को,

है आमंत्रण अभिज्ञान में ।

सोई हुई चिर उम्मीदों को,

जागृत कर दे काव्य विधान में ।।


प्राची की स्वर्णिम किरणों को,

करें अभिनंदित नित गान में ।

साज मिलें जब सप्त सुरों को,

सरगम गाएँ जन-कल्याण में ।।


पंख लगे आशाओं को,

प्रतिबिंबित करते प्रतिमान में ।

मान मिले जहाँ में जिनको,

परिवर्तित हो जाए पहचान में ।।


- मिथिलेश तिवारी "मैथिली"

प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

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