पढ़ें अश्वनी कुमार जायसवाल जी की रचनाएँ ( Ashwani Kumar Jaiswal )
(1) आज कुछ लिखा जाए
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आज कुछ लिखा जाए।
कलम पकड़ कर हाथ में
दिमागी जोर डाला जाए,
भावनाओं को कुरेद कर
अंदर से निकाला जाए।
आज कुछ लिखा जाए।।
इश्क मुश्क मिलन जुदाई
हुआ बहुत, नया किया जाए,
हया बेहया जुल्मो सितम
कहाँ तक अब सोंचा जाए।
आज कुछ लिखा जाए।।
खूबसूरती औ' कुदरत को
कब तक निहारा जाए,
जीवन-दर्शन अर्थ व्यर्थ
आत्मा परमात्मा खोजा जाए।
आज कुछ लिखा जाए।।
झांक भविष्य प्रयत्नपूर्वक
रूपहला ख्वाब बुना जाए,
मन अशांत धड़कने तेज
जल्द तापमान लिया जाए।
आज कुछ लिखा जाए।।
वक्त बीता घर बनाने में
जोश गया क्या किया जाए,
दोस्त खास न बन पाए
हमराह किसे बनाया जाए।
आज कुछ लिखा जाए।।
पत्नी आभार जता चुके
बच्चों का क्या लिया जाये,
खुद रहबर खुद हमनवा
खुदी को बुलंद किया जाए।
आज कुछ लिखा जाए।।
- अश्वनी कुमार जायसवाल
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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(2) ये हैं बेटियां
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आन – बान
घर की शान
खिली मुस्कान
मान सम्मान
ये है बेटियाँ।
वात्सल्य ममता
स्नेह उमड़ता
प्रेम बरसता
रिश्ता बनता
ये है बेटियाँ।
धीर गंभीर
न हों अधीर
सुनें पीर
राजा फकीर
ये है बेटियाँ।
ह्रदय विशाल
शांत वाचाल
स्थिर भूचाल
कर्म तत्काल
ये है बेटियाँ।
जल – थल
धरा विकल
नभ विह्वल
मिलें तो कल
ये है बेटियाँ।
मन से शांत
उद्वेलित विक्रांत
नहीं अक्रांत
न हो क्लांत
ये है बेटियाँ।
- अश्वनी कुमार जायसवाल
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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(3) नारी जागो, मत मानो हार
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बाहर एसिड अटैक घर मे हिंसा
हुआ वर्कप्लेस पर दुर्व्यवहार,
मानसिक यातना दुष्कर्म झेले
सुन्दर कृति और ये व्यवहार।
नारी जागो, मत मानो हार।।
प्रेयसी बन निभाए वादे वफा
बहुत चाहा और किया प्यार,
फिर भी न मिला वो, जो चाहा
जीत की बात क्या, मिली हार।
नारी जागो, मत मानो हार।।
पत्नी बन खुद किया समर्पण
घर की शोभा बच्चों का दुलार,
निभाई परिवार की जिम्मेदारी
चैन सम्मान नहीं मिली दुत्कार।
नारी जागो, मत मानो हार।।
अन्तर्मन आहत हुआ गया मान
झेले दंश सही पीड़ा दुर्व्यवहार,
मेरे अपने कुछ कह भी दें तो क्या
सोंच के रही चुप ये है परिवार।
नारी जागो, मत मानो हार।
अपना पति जीवन और सुहाग
सजते आभूषण करती श्रृंगार,
जीना-मरना दिन-रात नाम किए
फिर भी न रीझे ये बेदर्द यार।
जागो नारी, मत मानो हार।।
आवाज दो हल्ला करो दुनियाँ सुने
हो वर्कप्लेस चाहे घर या बाहर,
बोलो न सहो जुल्म चुप्पी तोड़ो
मान सम्मान की बराबर हकदार।
नारी जागो, मत मानो हार।।
- अश्वनी कुमार जायसवाल
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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(4) बच्चे
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अपना जीवन दिखता है
बच्चे जब बच्चे होते है।
खुश होते बच्चों के स॔ग
जब वो होते छोटे किशोर,
लगता जैसे मेरे ही अंग
होताधमाल मचता है शोर।
पापा जैसा दूजा न कोई
हर क्षण हर पल हर घड़ी,
वो मुझमे में औ' मैं उनमे
गैरों से क्या क्यों कर पड़ी।
दुख-सुख या भाव अभाव
जो समझाया समझ गए,
हर हाल स्थिति परिस्थिति
नहीं जिद, कहा मान गए।
बेटी शादी होने जाने पर
जब घर छोड़कर जाती है,
होता अलग बदन टुकड़ा
रूह शरीर छोड़ जाती है।
बहू किसी घर का चिराग
दैदीप्यमान अब अपना घर,
बेटे के संस्कार दिखे अपने
गलबहियाँ डालो अपना कर।
अपना जीवन दिखता है
बच्चे जब बच्चे होते हैं।
- अश्वनी कुमार जायसवाल
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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(5) हम सभ्य हो गए हैं
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तन ढकने को कपड़े न थे
फिर भी प्रयास कि ढके तन,
अब लगे अम्बार वस्त्रों के
फिर भी तन दिखाने को मन।
हम सभ्य हो गए हैं।।
आवागमन के साधन थे कम
फिर भी मिलते थे परिजनों से,
आज साधनों की है भरमार
फिर भी न मिलते प्रियजनों से।
हम सभ्य हो गए हैं।।
घर की बेटी पूरे गाँव की बेटी
क्या मजाल कोई आँख भी उठाए,
दरिदों के लिए मिल के खड़े होते
अब पड़ोसी भी आवाज न लगाए।
हम सभ्य हो गए हैं।।
मोहल्ले के बुजुर्गों का पूछते थे हाल
दादा बाबा लगें चरण स्पर्श करके,
हो जाते निहाल जब पाते आशीष
अब माँ-बाप वृद्धाश्रम में गुजारा करते।
हम सभ्य हो गए हैं।।
खिलौने की थी कमी बहुत
सब मिल आपस में खेलते,
आज खिलौनों की है भरमार
तो बच्चे मोबाइल से खेलते।
हम सभ्य हो गए हैं।।
मुहल्ले के पशुओं को खिलाते रोटी
गाय किसी की, पेट उसका हम भरते,
आज गरीब के बच्चे सो जाएँ भूखे
न रही इंसानियत परवाह नहीं करते।
हम सभ्य हो गए हैं।।
अपरिचित, नाम-काम पूछ लेते
जान पहचान यूँ ही हुआ करती,
अब पड़ोस मे कौन रहता है ?
न जाने हम, बात तक नहीं होती।
हम सभ्य हो गए हैं।।
- अश्वनी कुमार जायसवाल
कानपुर, उत्तर प्रदेश
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