नारी - by Girish Chandra Ojha "Indra"


नारी

-

नारी का रूप,

हितकर सर्वदा !

नर जानता।।


नारायणी है,

नारी ही बन जाती !

इस जग में।।


सीता - सावित्री

भगवती की शक्ति।

धारे जगत ।।


नारी तारती,

सदा उभय कुल !

वेद - कथन ।।


नारी कहाती,

सर्वदा अर्धांगिनी !

पुरुष साथ ।।


जग - मंगल,

नारी नर के साथ !

झुकाए माथ ।।


- गिरीश चन्द्र ओझा "इन्द्र"

आजमगढ़, उत्तर प्रदेश

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