सपने धरे रह जाएँगे - by Sanket Singh


सपने धरे रह जाएँगे

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पोस्टर से पटे दीवार,
इश्तेहार से भरे अखबार,
वो किताबों से जमे दुकान,
और लड़कों से भरे मकान,
चीख-चीख कर कहते हैं।
उठो... नहीं तो
सपने धरे रह जाएँगे।
माँ-बाप की सारी उम्मीदें,
क्षण भर में ढह जाएँगे।
फिर कोई आएगा तेरे जगह,
जमकर मेहनत करेगा, फिर,
सारे ख्वाब बासी हो जाएँगे।
उठो... नहीं तो
सपने धरे रह जाएँगे।
व्यवधानों का जीवन में,
आना-जाना लगा रहता है,
कर्मवीर वही कहलाते हैं,
जो चट्टान बन डट जाते हैं।
तू नहीं लड़ा तो,
सब व्यर्थ हो जाएँगे।
उठो... नहीं तो
सपने धरे रह जाएँगे।

- संकेत सिंह
सोनपै-जमुई, बिहार

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