पढ़े राजेश श्रीवास्तव जी की रचनाएँ ( Rajesh Shrivastava )
(1) झूठ
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जीवन में, झूठ का बड़ा महत्व है।
इसी से तो, लोगों के पास प्रभुत्व हैं।
पर बच्चों को, इसे पाप बताया गया,
वयस्कों के लिए, फलदायी पाया गया।
प्रेमियों के लिए, ये अवयस्क कला है,
इसके बिना प्रेमियों का, कहाँ कुछ भला है।
वकीलों के, रोजगार का एक हिस्सा है,
अदालतों में तो, रोज का ये किस्सा है।
राजनेताओं की होती है, ये जरूरत,
राजनीति तो झूठ की ही है मूरत।
प्रबंधक के लिए, प्रबंधन का मूल है,
यही तो आज, व्यापार का उसूल है।
एक अविवाहित के लिए, उपलब्धी है,
यही तो, सच को छुपाने की अवधि है।
विवाहित पुरषों की, जीवनदायिनी है,
ये इनके गृहस्थी की, रक्तवाहिनि है।
झूठ से, विवाहित संबंध अटूट होता है,
अच्छे के लिए, झूट भी कोई झूठ होता है।
प्रेमिकाएं, पत्नी बनने की राह में,
पत्नियाँ, प्रेमिका बनने की चाह में।
युक्ति लगाती रहती है, इसी परवाह में,
और निरंतर रहती हैं, झूठ की पनाह में।
जब, समस्त संसार ही मिथ्या है झूठा है,
फिर तू, सच के लिय क्यों रूठा है।
जग का ऐश्वर्य, हैरतअंगेज बड़ा होता है,
पर कफ़न में, जेब कहाँ होता है।
आप सब भी किसी न किसी रूप में,
आनंदित होंगे झूठ की गुनगुने धूप में।
आपकी प्रतिक्रिया चाहिए, झूठा ही सही,
क्योंकि अब मुझे झूठ से परहेज नहीं।
- राजेश श्रीवास्तव
बैंगलोर, कर्नाटक
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(2) जल संरक्षण
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जल से ही सिंचित धरा रही,
जल ही सृष्टि के प्राण रहे।
जल ही ज्वलंत भूतल व्यथा,
जल ही जीवन है ध्यान रहे।।
प्रकृति के पुजारी हम,
जल का भी तो सम्मान रहे।
जल संसाधन बचाने को,
साथ कला और विज्ञान रहे।
जल शुद्धता का अभियान रहे,
जल ही जीवन है ध्यान रहे।।
भूतल से विलुप्त हो रहा जल,
धरती भी हो रही है मरुथल।
मानव ही भू कर रहा अजल,
बिन जल मानव ही है बेकल।
जल संरक्षण का विधान रहे,
जल ही जीवन है ध्यान रहे।।
पहले थीं नदियाँ धार्मिक परिवेश,
नदियों में अब जाते अवशेष।
नदियों ही धों रहीं वस्त्र अंग केश,
नदियों ही झेलें औद्योगिक शेष।
जल शोषण का अब निदान रहे,
जल ही जीवन है ध्यान रहे।।
इस जल से ही वुज़ू हो पाए,
कहीं पादरी अपनी प्यास बुझाए।
कहीं पंडित भी तर्पण कराए,
शिव लिंग पर अर्पण कर आए।
सब धर्मों का अभिमान रहे,
जल ही जीवन है ध्यान रहे।।
सरकार करें नदियों को साफ,
गंद जनता फैलाए नाप - नाप।
नदियाँ सक्षम खुद होए साफ,
रोको गंदगी, अब करो माफ।
जनता को ये संज्ञान रहे,
जल ही जीवन है ध्यान रहे।।
- राजेश श्रीवास्तव
बैंगलोर, कर्नाटक
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(3) ये सितम
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ये तुम्हारी चुप्पी का सितम,
झकझोर रहा अंदर तक मन।
होंठ हैं खामोश तुम्हारे मगर,
सब बयां कर रही हैं आँखे नम।।
शिकवा है हमसे, तो जाहिर करो,
यू खामोश रह कर सजा तो न दो।
मुस्करा भी दो, तुम्हें मेरी कसम,
ये तुम्हारी चुप्पी का सितम...
इंतजार में हूँ अब चुप न रहो,
चुप्पी को अपनी अलविदा कहो।
हमें दे दो अपने सारे रंजो गम,
ये तुम्हारी चुप्पी का सितम...
जादू तुम्हारी चहकती आवाज का,
मैं तो कायल हूँ उसी अंदाज का।
कानों में घुले अब वो सुरीलापन,
ये तुम्हारी चुप्पी का सितम...
सब आपनी परेशानी मुझे दे दो,
शिकन भरी ये पेशानी मुझे दे दो।
दीवाने पे खाओ थोड़े तो रहम,
ये तुम्हारी चुप्पी का सितम...
- राजेश श्रीवास्तव
बैंगलोर, कर्नाटक
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(4) असमय बिछड़न
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घन नैन सा बरस रहा,
मन चैन को तरस रहा।
अब तेरा भी दरस कहाँ?
तू पास हमारे रहा नहीं।
पर है यहीं कहीं न कहीं।।
दो पहर हमारे बीत गए,
रेत भी मुट्ठी से रीत गए।
जीवन के सब संगीत गए,
कहने को कुछ अनकहा नहीं।
तू पास हमारे रहा नहीं,
पर है यहीं कहीं न कहीं।।
कुछ सपना तेरा टूट गया,
कुछ पल सुनहरा छूट गया।
हँसता यौवन भी रूठ गया,
अनुभव तो कुछ भी सहा नहीं।
तू पास हमारे रहा नहीं,
पर है यहीं कहीं न कहीं।।
उपवन के भी कई फूल,
असमय हो जाते हैं धूल।
बगिया की क्या है भूल,
पर बाग भवों में बहा नहीं।
तू पास हमारे रहा नहीं,
पर है यहीं कहीं न कहीं।।
जानें जीवन के पार,
कैसी होगी मझधार।
कैसे करेगा पार,
चिंतित हूँ, पर कुछ कहा नहीं।
तू पास हमारे रहा नहीं,
पर है यहीं कहीं न कहीं।।
- राजेश श्रीवास्तव
बैंगलोर, कर्नाटक
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(5) प्रेम
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क्या-क्या कहें हम?
कितना कहे हम?
प्यार तेरे ये खेल,
जैसे खुले में जेल।
प्यार के रंग ढंग,
मुस्कान भरी जंग।
चाहत पाने की,
खो कर मुस्कानें की।
छुप छुप रोने की,
आँखों में खोने की।
रात की जगाई,
अँधेरे में दिखाई।
रज़ाई में अकेले,
संग उनके खेले।
छत पर टहलना,
दूर से संग मिलना।
टकटकी इंतजार,
एक झलक यार।
प्यार के रंग हजार,
लिखें किस प्रकार?
ढाई अक्षर का आकार,
ब्रहमांड-सा विस्तार।
- राजेश श्रीवास्तव
बैंगलोर, कर्नाटक
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