पढ़ें सुरेश लाल श्रीवास्तव जी की रचनाएँ ( Suresh Lal Srivastava )
(1) सत्पथ
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मिले खुशी निज अंतर्मन को,
करिये सुन्दर काम वही।
आत्मतृप्ति जिससे न होवे,
उससे रहना दूर सही।
तोहमत तुम पर लगे भले ही,
पर अच्छाई न कभी छुटे।
प्रीति करो सज्जनता से तुम,
दुर्जनता से कभी नहीं।।
चलो सदा तुम नेक मार्ग पर,
महिमा इसकी भारी है।
सुन्दर कर्म करे जो कोई,
कभी न उसकी हारी है।
पुरुषोत्तम श्रीराम नहीं अब,
उपदेशक गीता कृष्ण नहीं।
महनीयता के परं गुणों से,
गुणगान आज भी जारी है।।
मानव अपनी गुण गरिमा से,
आदृत होता आया है।
किया कर्म जैसा है उसने,
वैसा ही फल पाया है।
सच्चे कर्म बखानित होते,
बुरे की हो तौहीन सदा।
कर्म किया जो पावन सुन्दर,
वह हर युग में हरषाया है।।
जहाँ रहो सद्कर्म करो तुम,
जीवन प्रभुता धन्य करो तुम।
सच्चा कर्म उपासक बनकर,
सबके अन्दर वास करो तुम।
याद करेगी दुनिया सारी,
कर्म ही सबको प्यारी है।
जो भी क्षमता प्राप्त तुम्हें है,
उसे कभी न व्यर्थ करो तुम।।
मानव जीवन प्राप्ति अर्थ में,
करना न अभिमान कभी।
सुन्दर कर्म विधानित करके,
इसका रखना मान सही।
करो धन्य पितु माँ को अपने,
तुमको जिसने जन्म दिया।
उनके ही आशीर्वादों से,
तुमने जग में नाम किया।।
जीवन में सुख दुःख का होना,
जीवन की परिभाषा है।
दूर नहीं दुःख से है कोई,
सुख पर न किसी की सत्ता है।
दुःख-सुख संयुत् जीवन को,
हमें सुसज्जित है करना।
कर्म सुमण्डित जीवन जिसका,
यश भागी वह होता है।।
- सुरेश लाल श्रीवास्तव
अम्बेडकरनगर, उत्तर प्रदेश
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(2) आदर्श शिक्षक
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भारत माँ की सन्तानों का,
जो जीवन मूल्य सजाते हैं।
त्याग, प्रेम, सद् भाव वृत्ति,
जो निज शिष्यों में भरते हैं।
व्यक्तित्व गुणों का श्रेष्ठ पाठ,
शिक्षार्थी जिससे हैं पढ़ते।
ऐसे आदर्श शिक्षकों का,
गुणगान सदा हम करते हैं।।
निज बेटे और बेटियों सम,
जो शिष्यों से अनुराग करें।
विद्यार्थी हित शिक्षार्थी बन,
बच्चों को नव ज्ञान जो दें।
ऐसे गुरुओं की कृपादृष्टि,
भाग्य विधान करे शिष्यों का।
व्यक्तित्व गुणों की शिक्षा ले,
भावी पीढ़ी बलवान बने।।
योग्य गुणी शिक्षकों का,
निज देश में महिमा मंडन हो।
शिक्षक भी अपनी गरिमा की,
रक्षा में प्रतिपल तत्पर हों।
निरपेक्ष भाव से शिष्यों को,
जो पान कराएँ ज्ञानामृत।
ऐसे शिक्षकों से मेरी मातृभूमि,
हर काल खण्ड में समृद्ध हो।।
गाँधी, गौतम, नेता सुभाष,
जिनके जीवन अभिप्रेरक हों।
वीर भगत बलिदानी से,
जिनका व्यक्तित्व संवलित हो।
भारत रत्नों का व्यक्तित्व मूल्य,
आदर्श रहे जिनके जीवन का।
ऐसे नागरिकों के निर्माणक,
गुरुओं से धरती धन्य रहे।।
परिवारी जीवन में मातु-पिता,
सद् गुण संयुत् जिसे करते हैं।
भाई-बहनों का नेह-प्रेम,
जीवन में खुुशियाँ भरते हैं।
ऐसे बच्चे जब विद्यालय में,
शिक्षार्थ पदार्पण हैं करते।
तब नैतिक मूल्यों का संस्कार,
गुरुजी ही उनमें भरते हैं।।
- सुरेश लाल श्रीवास्तव
अम्बेडकरनगर, उत्तर प्रदेश
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(3) नारी जीवन-सम्मान
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नारी-सम्मान निराकृत से,
दुःखमय समाज हो जाता है।
नारी को सुख पहुँचाने से,
सुखमय समाज हो जाता है।
निज देश में नारी की महिमा,
सज्जित थी पुरातन कालों में।
गायत्री, सावित्री अरु अनुसुया,
पूजित थीं उन समयों में।।
नारी की पूजा होने से,
पहले की महिमा भारी थी।
सुखमय समीर चहुँ ओर बहे,
किंचिद न दुश्वारी थी।।
मध्य-काल के आते ही,
नारी-जीवन अपमान बढ़ा।
जीवन-सम्मान बचाने को,
सतियों का है ग्राफ चढ़ा।।
इनके जीवन की धारा को,
हर तरह से पहुँची पीड़ा थी।
फिर भी अपने बलबूते से,
रजिया, दुर्गा हुँकार उठीं।।
मीरा के भक्ती तानों से,
दुर्गा के बलिदानों से।
नारी जागरण की डंका को,
कोई रोक सका न बजने से।।
ब्रिटिश-काल में नारी ने,
अपनी शक्ति थी दिखलाई।
पुरुषों के समान नारियाँ भी,
रणक्षेत्रों में उतर आईं।।
लक्ष्मी बाई, विजय लक्ष्मी,
अरुणा आसफ भी बोल उठीं।
इनके शक्ति प्रदर्शन से,
अंग्रेजों की सत्ता डोल उठी।।
नारी महिमा का यह बखान,
जितना भी है सो कम है।
हर क्षेत्र में नारियों का परचम,
लहराया अब भारत में है।।
इंदिरा, बेदी, मदर टेरेसा,
संधू की अब है शान बढ़ी।
एवरेस्ट विजेता बनी बछेन्द्री,
जज बनी फातिमा बीबी थीं।।
नारियाँ अपनी प्रतिभा से,
भारत का मान बढ़ा हैं रहीं।
मेधा जी की सामाजिकता,
विश्व में आज भी गूँज रही।।
मिशन शक्ति की ज्योति अब,
चहुँ दिसि प्रसरित होय।
नारी -जीवन सम्मान से,
भारत की उन्नति होय।।
- सुरेश लाल श्रीवास्तव
अम्बेडकरनगर, उत्तर प्रदेश
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(4) सजा लो अपने जीवन को
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सजा लो अपने जीवन को,
बहुत अनमोल मौका है।
मनुज तन जो मिला तुमको,
इसे न व्यर्थ करना है।
परस्पर प्रेम तुम करना,
द्वेष का भाव न रखना।
सदा ही नेक कर्मों का,
तुम्हें तो कोश भरना है।।
तुम्हारा जीवन जिससे है,
तुम्हीं अरमान जिसके हो।
उन्हें न दुःख कभी देना,
उन्हीं से दुनिया में तुम हो।
पिता-माता से बढ़ करके,
नहीं है लोक में कोई।
दिया है कष्ट जो इनको,
कहो! कल्याण कैसे हो।।
विचारों और कर्मों से,
विभूषित कर लो जीवन को।
करें गुणगान सब तेरा,
कभी न मान-मर्दन हो।
करोगे कर्म तुम जैसा,
मिलेगा फल तुम्हें वैसा।
सदा नेकी के पथ चलना,
परं उद्देश्य तेरा हो।।
समय सबके लिए सम है,
मगर प्रारब्ध न सम है।
किसी के कर्म सुन्दर हैं,
कोई अच्छा न करता है।
कीर्ति न तन से बढ़ती है,
नहीं यह धन से है बढ़ती।
प्रशंसा कर्म की होती,
इसी की पूजा होती है।।
भले की सबके तुम सोचो,
भला सबका सदा करना।
विचारों से व कर्मों से,
किसी का न बुरा करना।
जगत के श्रेष्ठ प्राणी हो,
परं ज्ञानी विज्ञानी हो।
ज्ञान विज्ञान के बल पर,
सभी का मान तुम रखना।।
- सुरेश लाल श्रीवास्तव
अम्बेडकरनगर, उत्तर प्रदेश
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(5) अभिमान
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अभिमान न करो इस जीवन पर,
यह जीवन नश्वर होता है।
कल तक था जो इस दुनिया में,
वह आज मृतक कहलाता है।
अच्छे कर्मों के बदौलत ही,
मानव की गरिमा बढ़ती है।
यह सोच तुम अच्छे कर्म करो,
इसकी ही महिमा होती है।।
अहंकार को त्यागकर,
जीवन को सफल बनाओ तुम।
विनयशीलता के गुण से,
आदर्श व्यक्तित्व सजाओ तुम।
अच्छे गुणों के कारण ही,
मानव की पूजा होती है।
बाकी शरीर तो नश्वर है,
इसको न बचा पाओगे तुम।।
जब तक तुम जग में जीवित हो,
अच्छे कर्मों का विधान करो ।
बाकी धन-दौलत तो नश्वर है,
इस पर न अभिमान करो।
निज रूप देखकर दर्पण में,
सुन्दरता पर न करो नाज।
इससे न जीवन की शान बढ़े,
इस पर न कभी अभिमान करो।।
सुन्दर कपड़े जेवर सारे,
पल भर के ही सब साथी है।
अच्छे कर्मों की कीर्ति सदा,
इस दुनिया में रह पाती है।
जब तक शरीर संग स्वांस रहे,
शुभ कर्मों का ही विधान करो।
इस पर है किसी का जोर नहीं,
कब कहाँ मृत हो जाती है।।
- सुरेश लाल श्रीवास्तव
अम्बेडकरनगर, उत्तर प्रदेश
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