बदलते रिश्ते - by Babita Mandhana
बदलते रिश्ते
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बदला मौसम भीगा यह मन,
सच्चे रिश्ते खोजे हर जन।
बचपन बीता बदले सपने,
दूर हुए सब साथी अपने।
मिट्टी से सुगंध थी आती,
स्नेह भरी बातें थी भाती।
मित्र सदा थे जीवन-आशा,
करते थे झट दूर निराशा।
अर्थ-मोह के बंधन काटे,
भेद-भाव मन संशय पाटे।
निर्मल निश्छल हृदय निरंतर,
निभते रिश्ते हर्षित अंतर।
समय रूपांतर ऐसा आया,
स्वार्थ परत बन मानव छाया।
बने अजनबी अपने रिश्ते,
समझा जिनको कभी फ़रिश्ते।
वाक-दंश होते है घातक,
स्नेह बनाता रिश्ते चातक।
मीठी वाणी हो हृदय सरल,
कटुता है रिश्तों का गरल।
ओढ़ अपनत्व का तू कंबल,
रिश्ते होते जीवन-संबल।
कठिन घड़ी जो साथ निभाते,
सच्चे रिश्ते वही कहलाते॥
- बबीता माँधणा
हावड़ा, पश्चिम बंगाल
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