पढ़े डॉ० आशा शरण जी की रचनाएँ ( Dr. Asha sharan )


(1) परिवार

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परिवार एक उपवन है,

जिसके हम सब सुमन हैं।

जिसने अपने पुष्पों की,

खुशबू चहुँ ओर बिखेरी है।।


परिवार

में झिड़की भी है, प्यार भी है,

जहाँ अपनों की तकरार है।

फिर भी आपस में प्यार है,

प्रतिक्षण बहती प्रेम की बयार है।।


परिवार

में मुखिया का अनुशासन है,

जीवन की पहली पाठशाला है।

सद्गुणों की खान बनकर,

सबका जीवन सँवारा है।।


परिवार

में हर वक्त होली और दीवाली,

होती है यहाँ अपनों में ठिठोली।

संकट में बन जाती है ये दीवार,

इसमें ही होते हैं अपनों के दीदार।।


परिवार

का एकाकी या संयुक्त हो प्रकार,

जिसमें रहती है सुरक्षा की धार।

हर संकट को हाथों से लेते हैं थाम,

जब हो जीवन में छाँव हो या घाम।।


परिवार

में ही मिलता दादा-दादी का दुलार,

जो पूरी करता है अपनों की मनुहार।

यहीं मिलता है अनुभव का भंडार,

जो क्षण में कर देता संकट से उद्धार।।


परिवार 

में ही पलती है रिश्तों की मिठास,

जो कर देती है जीवन को उजास।

जग का है सबसे सुरक्षित स्थान,

जहाँ मिलता है हमें अपनों का मान।।


- डॉ० आशा शरण

खंडवा, मध्यप्रदेश


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(2) आखिरी पाती 

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सुन नीरद इस पाती को

पीहर तक पहुँचा देना,

मैं खुश हूँ बस यही बात

तुम उनको समझा देना।


मत बतलाना ये तुम कि

मैं जीवन-रण हार चुकी,

जलबिंदु की लड़ियों सी

मेरी पीड़ा तुम पी-जाना।


वीरा से ये मत कह देना 

कि लड़ते जीवन हार गई,

तुम रजतबिंदु-सी बनकर 

उसके माथे में सज जाना।


भगिनी को मत ये बतलाना

उसका संग अब छूट चला,

तुम उसके साथ छेड़ सुर के

जीवन तुम उसका महका देना।


मेरी अनपढ़ माँ के आगे

खुद ही पाती तुम पढ़ देना,

माँ के आँचल में जाकर 

खुशियाँ तुम बरसा देना।


नीरद तुम बाबुल-सम्मुख

टुकड़ों में ही जाकर गिरना,

क्योंकि सह न सकूँगी मैं

उनके आँखों से बहते झरना।


ये भूले से भी मत कह देना

कि ये है मेरी आखिरी पाती,

वे बिल्कुल यह सह न सकेंगे

क्योंकि मैं हूँ उनकी लाडली।


- डॉ० आशा शरण

खंडवा, मध्यप्रदेश

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