प्रेम का बंधन - by Jaya Arya
प्रेम का बंधन
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बिन देखे बिन छुए भी
महसूस किया था तुमने मुझे,
क्या यही प्रेम का बंधन है
या फिर स्पर्श और आलिंगन।
छूकर देखूँ तुम्हें बार-बार
मन अपना हर्षित कर लूँ,
तन और मन का मिलन अगर हो
अद्भुत दुनियाँ में विचरूँ।
रोम-रोम को पुलकित कर दूँ
अपनी साँसो को भर दूँ,
छोड़े थे जो तुमने यहाँ पर
उन साँसो को मैं जी लूँ।
दिल भी मेरा, जाँ भी मेरी
सब कुछ पा लिया मैंने,
रह लो दिल में यूँ ही पिया तुम
वरना कहीं मैं खो जाऊँ।
- जया आर्य
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