पढ़े डॉ० मधुसूदन तिवारी जी की रचनाएँ ( Dr. Madhusudan Tiwari )
(1) स्वप्न लोक
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बियावान जंगल से गुजरे थे जब हम।
अकेले घनी छाँव बरसात का था क्रम।।
चहकते दहकते थे वन जीव सारे।
भय से घिरे चल रहे डर के मारे।।
तभी बीच जंगल में आहट के पदचाप।
रस्ते को रोके खड़ी नार चुपचाप।।
कच्छप गति से ठिठक हम चलें थे।
भय का सहारा लिए गुम हुए थे।।
मृदुलता से बोली पथिक मत हो हैरान।
हम हैं वन की देवी नहीं कोई शैतान।।
परिचय बताओ कहाँ का है घर-द्वार।
यहाँ से गुजरते ही रहते हो हर बार।।
हे देवी हम भी हैं जंगल के वासी।
ना हैं कोई अंजान ना कोई प्रवासी।।
जब भाव उठते गज़ल गीत लिखते।
बिखरे हुए ख्वाब कलम में है सजते।।
चलो साथ मिलकर गज़ल गीत गाएँ।
तरंगों में बहकर महफ़िल सजाएँ।।
गए जब कुटी में सजे थे सितारे।
परियों की महफ़िल में झुमते चाँद तारे।।
विविध राग रागों स्वरो का था संगम।
थिरकती थी परियाँ बज रहे थे मृदंगम।।
कवि भाव लिख दे सज जाते तराने।
गाकर सुनाए, कर देते दीवाने।।
कलम में है वीणा, कलम में है वाणी।
कलम वंदन करती बसती वीणा पाणी।।
अहोभाग्य कि उनने विश्वास की है।
कवि दूर ना पास ये अहसास दी है।।
वहीं पर सजाए कुछ शब्दों की माला।
मृदुलता से पहनी वो वन देवी बाला।।
- डॉ० मधुसूदन तिवारी
मंडला, मध्य प्रदेश
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(2) अंतर्रात्मा के शब्द
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बड़ा नाजुक सा रिश्ता है,
उन डाली का फूलों से।
माली बगिया सजाता है,
मधुवन के उसूलों से।।
जब रिमझिम-सी बारिस हो,
उसी के साथ हो जाएँ।
चमन में फूल खिल जाएँ,
चमन में फूल खिल जाएँ।।
सभी तो अपने-अपने में,
सिमट ते जा रहे अब तक।
ये जीवन समर्पित हो,
जीते जा रहे जब तक।।
कभी तो उनके जख्मों में,
मलहम हम बनके दिखलाएँ।
चमन में फूल खिल जाएँ,
चमन में फूल खिल जाएँ।।
हम अपना हाल में कह के,
हम उनका हाल तो जानें।
न भूलें कौन हैं अब हम,
मानवता के रिश्ते पहचाने।।
बस थोड़ी-सी दुआ देकर,
दवा हम उनकी बन जाएँ।
चमन में फूल खिल जाएँ,
चमन में फूल खिल जाएँ।।
हम अपने भाव लिखते हैम,
तो उनके घाव दिखते हैं।
कुछ कर गुजरने को,
सदा हरदम तरसते हैं।।
जुनुं का साथ न थोड़ा,
जुनुं के साथ हो जाएँ।
चमन में फूल खिल जाएँ,
चमन में फूल खिल जाएँ।।
- डॉ० मधुसूदन तिवारी
मंडला, मध्य प्रदेश
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(3) मात-पिता
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बज रही तालियाँ उस परम धाम से।
अब तो गुणगान कर ले, उन्हीं नाम से।।
जिनने जन्में हैं सारे जगत में इंसा।
वो पिता मात होते हरदम मेहरबां।।
उनसे रोशन हर दुनिया के सारे शमां।
अपना मस्तक झुकाता तभी आसमाँ।।
कोई देखें तो उनका हृदय झाँक के।
कोई समझे तो खुद को कभी आंक के।।
कभी घुट के जिए घूँट आँसू पिए।
माँ पिता ही तो थे सबको सब कुछ दिए।।
पिता ही विधाता हैं समझें सभी।
याद न भूल जाना पल भर भी कभी।।
रूप दोनों का ही तो विधाता गढ़ा।
वेद ग्रन्थों का संदेश जिनने पढ़ा।।
धूप छाँव का संगम पिता मात है।
गूढ बातें लिखी जो सही बात है।।
पिता रोशन-सा सूरज तो माँ चाँद है।
तभी तो दिशाएँ करती नांद है।।
उनकी पूजा न दूजा परम श्रेष्ठ है।
सभी देवों में देव वहीं जयेष्ट है।।
- डॉ० मधुसूदन तिवारी
मंडला, मध्य प्रदेश
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(4) सरस्वती वंदना
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माँ सरस्वती वीणा स्वर वंदन।
शीर्ष नमन शत शत अभिनन्दन।।
धूप दीप नेवैध्य पुष्प जल।
गीतों का श्रंगार समर्पण।।
अति कोमल कपोल कमल दल।
छवि संगमरमर शुभ्र रजत तन।।
हंस सवारी माँ को प्यारी।
मनमोहक छवि अति सुंदर तम।।
माँ सरस्वती वीणा स्वर वंदन--
राग अलाप सागर स्वछन्द मन।
अविरल जल धारा में क्रन्दन।।
सुर श्रंगार सरस वीणा स्वर।
जल तरंग रागों से गुंजन।।
माँ सरस्वती वीणा स्वर वंदन--
सरस गीत हर कंठ सप्त स्वर।
ऊंची लहरों में हैं सरगम।।
कोकिल कंठ मधुर स्वर संगम।
है उपहार प्रकृति में अनुपम।।
माँ सरस्वती वीणा स्वर वंदन।
शीर्ष नमन शत शत अभिनन्दन।।
- डॉ० मधुसूदन तिवारी
मंडला, मध्य प्रदेश
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