पढ़े नलिनी राज जी की रचनाएँ ( Nalini Raj )


(1) चाहतों की उड़ान

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एक खूंटा है मेरे घर पर 

जिससे मेरी चाहतों के डोर बंधें हैं ।

कुछ अधूरे ख्वाबों, टूटे अरमानों के 

ज्यादा नहीं दो चार फूल उगे हैं ।।


कभी अश्रु के छींटे भी मार आती हूँ 

कभी आशाओं की धुप भी दिखती हूँ ।

कीटाणु न लग जाये बेलगामी का 

इसलिए बंधन के पाठ भी सिखाती हूँ ।।


मोहक-सी खुश्बू इसकी जब भी

मेरे दिल को कभी पुचकारते हैं ।

तब सोचती हूँ क्या सभी  

ऐसे ही अपने दिलों को मारते हैं ।।


क्या कैद है औरों की चाहत भी युहीं 

कश्मकश से घिरी समाज के तालों में ।

क्या ताउम्र ऐसे ही सिसकती रहेगी

कुछ अनछुए ख्वाहिशें दर्द के छालों में ।। 


क्या इन्हें मुकाम देने को एक बेबश 

तोड़ नहीं सकती अपने पैरों की बेड़ियाँ ।

थोड़ी-सी बेपरवाही का तड़का लगा 

चले उस तरफ उठा ले अपनी एड़ियाँ ।।


- नलिनी राज

बैंगलोर, कर्नाटक


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(2) आत्मनिर्भर

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लड़कियों समझ ले आप मेरी इस बात को 

अगर काबू में रखना है हर हालात को ।।

हर एक को आत्मनिर्भर होना है

गाँठ बाँध ले मेरी इस बात को ।।   


चाहे आप एक पत्नी हो बहु हो , 

बेटी, माँ, या फिर किसी की बहन ।।

अपने पैरों पे खड़ा है रहना 

इस बात की हो आपको पूरी गहन ।।


वक्त के गर्भ में क्या छुपा है 

ये कोई नहीं जनता या जान पाएगा ।।

कब किसकी परिक्षा हो जाए 

ये कोई कैसे पहचान पायेगा ।।


जब विपदा आती है जिंदगी पे तो

सबसे मजबूर औरत ही पाई जाती है ।।

दूसरों के टुकड़ों पे पलने के लिए

दर-दर की ठोकरे खायी जाती है ।।


अपने को इतना सशक्त बनाओ कि

हालात भी झुक जाए आपके सामने ।।

इस बात से आप ना डर जाए कि

हाय ! अब कौन आएगा थामने ।।


मैं ये नहीं कहती कि मगरूर बनें

आप अपने ही कमाई की चूर में ।।

पर हाँ मोहताज ना रहें जिंदगी आपकी

धूमिल ना हों किसी के पैरों की धुर में ।।


- नलिनी राज

बैंगलोर, कर्नाटक


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(3) प्यार और जिम्मेदारी

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क्यूँ वक़्त के साथ प्यार धुंधला-सा जाता है ?

धीरे-धीरे जरूरतों का बादल छा जाता है ।।


तुम भी वही हो और वही हम भी हैं,

एक दूसरे का साथ पाने का मौसम भी है ।

बस जिंदगी चल रही है भागम-भाग में,

इस उलझन में चाहत ना जताने का गम भी हैं ।।


क्या हमने ही चाही थी ऐसी जिंदगी,

जिसमें साथ होकर भी साथी का एहसास नहीं है ।

कभी बच्चे तो कभी रिश्तों की जिम्मेदारी,

जरूरतों के शोर में हम पास रहकर भी पास नहीं है।।


जिंदगी के इस मोड़ पे खड़ी आज सोचती हूँ,

इतनी दूर चले आए एक साथ एक नदी की तरह ।

बड़ी हिम्मत से चला रहें, अपनी बसाई दुनियाँ को

हरपल जी भी रहें हैं, हम एक सदी की तरह ।।


प्यार तो तुम्हे भी है और मुझे भी है,

पर क्या करें, रुक कर एहसास करने का वक्त कहाँ ? 

कभी मेरी तो कभी उनकी आजमाईश हो जाती है,

बैठ कर बातें करलें प्यार भरी ऐसा कोई तख़्त कहाँ ?


क्या इसे ही जिंदगी का नाम देते हैं जहाँ,

प्रेमी भी है प्रियतमा भी और सपनों का नगर भी ।

पर प्यार दिखाने का, जताने का, महसूस कराने का,

ना कोई जिक्र है ना फिक्र है ना ही कोई डगर भी ।।


तो क्यूँ न चुरा लें अपनी ही इस जिंदगी से,

हर अंतराल पे एक पल प्यार भरे एहसास का ।

जिसे चाहा उसे ही पाया, जीया भी खूब है,

गुमां भी तो कर सके कभी तुम्हारे पास का ।।                                   

- नलिनी राज

बैंगलोर, कर्नाटक

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