पढ़े नन्द किशोर बहुखंडी जी की रचनाएँ ( Nand Kishor Bahukhandi )
(1) अंतिम नमन
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आज तिरंगे में लिपटे आए हो,
शहीद देश के लिए हुए हो,
रुदन करूँ या न करूँ,
अश्रु अपने रोक लेती हूँ।
याद आती हैं तुम्हारी वो बातें,
वो विवाह के समय की कसमें वादे,
वचन लिया था तुमने मुझसे उस दिन,
देश रक्षा में शहीद हो जाऊँ न करना रुदन।
तुम्हें कितना था अपने देश से प्रेम,
करते थे गर्व अपनी वर्दी को पहन,
गर्वित मैं भी होती थी तुम्हारे संग,
चमक उठते थे तुम्हे देख मेरे नयन।
सीमा पर जाते मुझे सांत्वना देते तुम,
मेरी निशानियों का रखना ध्यान तुम,
देशप्रेम का सदा पाठ पढ़ाना तुम,
देशभक्ति लौ को हृदय में जलाए रखना तुम।
तिरंगे में लिपटे चल पड़ी हूँ तुम्हारे साथ,
तुम्हारी अंतिम यात्रा में कन्धा दे खड़ी हूँ साथ,
वचन देती हूँ तुम्हे मेरे शहीद फौजी,
बेटा भी समर्पित होगा देश को फौजी।
सलामी दी जा रही है तुम्हें मेरे सैनिक,
चिता में लेटे भी चेहरा दिख रहा है गर्वित,
तिरंगा जैसे ही सौंपा जाता है मुझे,
गर्व से सीना तन जाता है मेरा भी वैसे।
देख रही हूँ तुम्हे अग्निदेव की गोद में,
समा गए हो मेरे फौजी देश की माटी में,
नमन नमन नमन अंतिम नमन मेरा,
चली हूँ पथ पर करने पूरा तुम्हारा सपना।
- नन्द किशोर बहुखंडी
देहरादून,
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(2) सड़क
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भाग्य सड़क का कैसा अजीब,
सदियों से ठहरा नसीब,
यूँ ही मीलों चलती जाए,
मंजिल कहीं न उसे मिल पाए।
वाहन भारी दौड़ते जाए,
बोझ अनगिनत सहती जाए,
गर्मी बरसात सर्दी का मौसम,
उसके लिए न कोई ओढ़न।
घाव उसके जब तन को लगे,
गड्ढे वहाँ नजर तब आए,
तुरन्त पैबन्द लगा दी जाए,
गरम चारकोल से भर दिया जाए।
शहर किनारे बसा दिए जाए,
बहुमंजिली इमारत खड़ी हो जाए,
रोशनी की चमक न उसे भाए,
आपबीती वो किसे सुनाए।
कोई वृक्ष लगवाता किनारे,
छाँव उसके तन पर हो जाए,
हरियाली देखकर वो खुश होती,
स्वयं पर वो तब इतराती।
उसको कभी चीरा जाए,
पाइपलाइन बिछा दी जाए,
टेलीफोन की लाइन ही तो क्या,
सीवेज की लाइन भी गिरवा दी जाए।
गारा चारकोल से सीना सिया जाए,
रोलर उस पर चलवा दिया जाए,
नामकरण उसका किया जाए,
महापुरुषों के नाम दिए जाए।
सड़क तेरी भी किस्मत क्या,
अश्रु निकल न पाए हाय,
फिर भी तू इठलाती जाए,
फल बिन कर्म किए तू जाए।
- नन्द किशोर बहुखंडी
देहरादून, उत्तराखंड
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