प्रीति शर्मा "असीम" जी की रचनाएँ ( Preeti Sharma "Aseem" )
(1) मैं भारतीय हूँ
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गर्व से कहता हूँ,
मैं भारतीय हूँ।
वेदों की धरती पर,
वेदान्त अनुरागी हूँ।
गर्व से कहता हूँ,
मैं भारतीय हूँ।
जीवन को,
आलौकिक करती।
भारत के ज्ञान में,
वो भक्ति है।
परमात्मा और आत्मा के,
अंशों में सम्पूर्ण सृष्टि है।
गर्व से कहता हूँ,
मैं भारतीय हूँ।
यह धरा नमनीय है।
जहाँ राम-कृष्ण की मस्ती है।
संसार को ,
शिक्षित करने वाली
सिर्फ भारत की अपनी हस्ती है।
गर्व से कहता हूँ,
मैं भारतीय हूँ।
भारत के गौरव को देख-देख,
सदा विश्व चकित रह जाता है।
उसे लूटने को हर-पल,
नित छद्म योजनाएँ बनाता है।
भोला भारत प्रेम अनुरागी,
शत्रु को भी,
खुली बाहों से पुकारता है।।
गर्व से कहता हूँ,
मैं भारतीय हूँ।
भारत का हूँ,
मैं भारतीय हूँ।।
- प्रीति शर्मा "असीम"
नालागढ़, हिमाचल प्रदेश
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(2) हिंद की बेटी
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मैं हिंद की बेटी... हिंदी हूँ।
मैं विश्व विजयी सन्धि हूँ।
भारत के,
उज्जवल माथे की।
मैं ओजस्वी... बिंदी हूँ।
मैं हिंद की बेटी .....हिंदी हूँ।
संस्कृत, पाली,
प्राकृत, अपभ्रंश की,
पीढ़ी-दर-पीढ़ी... सहेली हूँ।
मैं जन-जन के
मन को छूने की,
एक सुरीली... सन्धि हूँ।
मैं मातृभाषा... हिंदी हूँ।
मैं देवभाषा,
संस्कृत का आवाहन।
राष्ट्रमान... हिंदी हूँ।।
मैं हिंद की बेटी... हिंदी हूँ।
पहचान हूँ हर,
हिन्दुस्तानी की... मैं।
आन हूँ,
हिंदी साहित्य के
अगवानों की... मैं।।
माँ,
बोली का मान हूँ... मैं।
भारत की,
अनोखी शान हूँ... मैं।।
मुझको लेकर चलने वाले,
हिंदी लेखकों की जान हूँ... मैं।
मैं हिंद की बेटी... हिंदी हूँ।
मैं राष्ट्र भाषा... हिंदी हूँ।
विश्व तिरंगा,
फैलाऊँगी।
मन-मन हिन्दी
ले जाऊँगी।।
मन को तंरगित कर,
मधुर भाषा से
हिंदी को,
विश्व मानचित्र पर,
सजा कर आऊँगी।।
- प्रीति शर्मा "असीम"
नालागढ़, हिमाचल प्रदेश
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(3) गुरु
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जीवन को,
जो उत्कृष्ट बनाता है।
मिट्टी को,
जो छूकर मूर्तिमान कर जाता है ।
बाँध क्षितिज रेखाओं में,
नये आयाम बनाता है।
जीवन को,
जो उत्कृष्ट बनाता है।
ज्ञान को,
जो विज्ञान तक ले जाता है।
विद्या के दीप से,
ज्ञान की जोत जलाता है।
अंधविश्वास के
समंदर को चीर,
नवीन तर्क के
साहिल तक ले जाता है।
मानवता की पहचान से,
जो परम ब्रह्म तक ले जाता है।
सत्य-असत्य,
साकार को आकार कर जाता है।
जीवन-मरण,
भेद-अभेद के भेद बताया है।
वह प्रकाश-पुंज,
ईश्वर के बाद गुरु कहलाता है।
- प्रीति शर्मा "असीम"
नालागढ़, हिमाचल प्रदेश
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(4) बचपन और पिकनिक
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बचपन
हँसता, खेलता, गुनगुनाता है।
हर फिक्र को,
भुलाकर,
हर दिन को,
एक पिकनिक की तरह मानता है।
बचपन
हँसता, खेलता, गुनगुनाता है।
दोस्तों के साथ,
मनाई एक दिन की,
पिकनिक को,
बचपन भूल नहीं पाता है।
बचपन,
हँसता, खेलता, गुनगुनाता है।
पानी पे उछलता है,
हर छल को भूलता है,
रेत के किले बनाता है।
जिंदगी की,
हकीकत से कितना,
परे सोचता है।
कागज की,
कश्ती में जिंदगी की,
होड़ भूलता है।
कुछ जानता नहीं।
बस...
दोस्तों के साथ,
खेलना जानता है।
स्कूल के बस्ते से,
परे भागना जानता है।
अपने दोस्तों के साथ,
जिंदगी की हर खुशी को,
खोलना जानता है।
बस हर दिन,
पिकनिक हो,
बस यही चाहता है।।
- प्रीति शर्मा "असीम"
नालागढ़, हिमाचल प्रदेश
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(5) मासूमियत और वफादारी
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मासूमियत,
और वफादारी
दोनों साथ-साथ चलते हैं।
जिंदगी के,
हर सफर को,
दोनों साथ-साथ तय करते हैं।
मासूमियत,
और वफादारी
दोनों साथ-साथ चलते हैं।
विश्वास ही है,
जो साथ-साथ चलते हैं ।
उसी के दम पर,
आगे-आगे बढ़ते हैं ।
तब ...!
डर कैसा ...?
जिंदगी की,
तमाम मुश्किलें
आसानी से हल करते हैं।
मासूमियत,
और वफादारी
दोनों साथ-साथ चलते हैं।
धोखे से नहीं,
जीतता इंसान।
अपनी,
चलाकियों से,
हार जाता है।
बड़ी-बड़ी शक्तियाँ,
जहाँ दफन हो गई
भू के गर्भ में,
सिर्फ
मासूमियत
और वफादारी है।
जो करामात,
कर जाती है।
रास्ते कितने,
भी मुश्किल हो।
चलते-चलते,
मंजिलें पा जाती है।
मासूमियत,
और वफादारी...
जिंदगी को,
जिंदगी बना जाती है।
बड़ी-बड़ी मंजिलें,
पलक झपकते ही,
पल में ही पा जाती है।।
- प्रीति शर्मा "असीम"
नालागढ़, हिमाचल प्रदेश
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