प्रभात - by Putul Mishra
प्रभात
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पूर्वांचल, सौम्य, शान्त
अनुरंजित
उदयाचल रवि रहित
ज्योत्सना ज्योतित पृथ्वी
हो रही है प्रस्तुत धीरे-धीरे
दिनकर के स्वागत हेतु
प्रथम प्रहर का समय
लीलाधारिणी पृथ्वी
नवोढा सी सजी हुई
है उत्सुक
रवि आया किसलयदल झूम
उठा तब, खग बोल उठे नाना स्वर
संगीत फूटती झरनों से
खिल गए भूमि के अधर
अलसाई पृथ्वी जागी लेकर
अंगडाई उठे सभी
कली खोली अपने भीचें होठ
प्रभात का समय
कोलाहल गूँज उठा सब ओर
रवि नित आए, नित बरसे
कनक किरण कण
प्रफुल्लता बिखरे हर ओर
हो सार्थक यह प्रभात।
- पुतुल मिश्र
सिलीगुडी-दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल
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