बदलता है वर्तमान - by Saraswati Mallick
बदलता है वर्तमान
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किया नहीं जा सकता
किसी का मूल्यांकन
उसके वर्तमान से,
प्राप्त नहीं हो सकता सत्य
केवल अनुमान से।
परिवर्तन है नियम
प्रकृति का,
रहते नहीं दिन सदा एक समान से,
चलता रहता है अनवरत कालचक्र,
उत्पन्न होती हैं संभावनाएँ नई,
विधाता के विधान से।
पहुँचा जा सकता है शून्य से शिखर तक
हौसलों की उड़ान से,
धरती पर रेंगने वाले भी,
वक्त आने पर बातें करते हैं आसमान से।
गिरे हुए को उठाने की अपेक्षा
किया जाता है हर इंसान से,
जानते हैं जो गिरकर स्वयं संभलना,
रोक नहीं सकता उनको कोई
भाग्य के नवनिर्माण से।
टूटता है हृदय
हर किसी का अपमान से,
प्रयोग करें इसीलिए
वाणी और व्यवहार का ध्यान से।
- सरस्वती मल्लिक
मधुबनी, बिहार
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