पढ़े सत्यप्रकाश शर्मा 'सच' जी की रचनाएँ ( Satyaprakash Sharma 'Sach' )


(1) मूक पुकार 

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अनवतरित नन्हा कुछ व्यथा  

   कह रहा निज जीवन संताप ।

        अभी-अभी तो हुआ स्पंदन

             पूर्ण नहीं हुआ जीवन मिलाप ॥


    मत छीनो मेरा जीवन तात 

        मुझे जीना है जीना है मात ।

              कैसे निर्मोही हो सकते है

                      जीना है मुझे बहु-बहु भात ॥


मैं भ्रुण हूँ जीवन आधार

    मैं ही जीव जंत का सार।

           मुझसे ही बनती है सृष्टि 

                   जीने का है अधिकार   ॥


       सुनो-सुनो रे सकल संसार

             मेरी पीड़ा हरण मौन पुकार ।

                     जग जीवन की किलकारी 

                             में भान हो मूक चित्कार ॥


 भ्रूण पुकार अनसुना ना कर

       सत्य सच है भ्रुण हंत महापाप ।

              सृष्टि रचन प्रकृति विरुद मनुज 

                        क्यो कुल्हाडी मारे निज आप ॥

              

- सत्यप्रकाश शर्मा 'सच'

नागौर, राजस्थान


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(2) जुनून

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ख्वाबों के पंख लगा 

उड़ता चल मंजिल ओर ।

दिल में जज्बा लेकर 

बढ़ता चल मंजिल ओर ॥


     उत्साह उमंग उल्लास लिए, 

     विजयश्री वरण करण चल । 

     सतत साधना संकल्प धर ,

     दिल में जुनून चरण धर ॥


पथ बाधाओं को चीर-चीर ,

हर क्षण पल लक्ष्य उन्मुख ।

जीत का जश्न दृग संजोए ,

जय जुनून रख सन्मुख ।।


         कर्म रथ आरूढ़ हो ,

         यति गति कमान संभाल ।

         नित्य निरन्तर पथ परख ,

         बढ़ चल हर कदम संभाल ॥


जय होगी , जय होगी 

सत्य सच है जुनून हो गर ।

असंभव को संभव बना ,

जुनून है असल बाजीगर ॥


- सत्यप्रकाश शर्मा 'सच'

नागौर, राजस्थान

1 comment:

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