पढ़े शिवनन्दन सिंह जी की रचनाएँ ( Shivnandan Singh )


(1) तुम ही जानो

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तुम ही जानो कितनी सासें,

हमने  साथ  बिताई   है।

जीवन की तपती दुपहरिया,

देहरी  संग  छुपाई   है।

बदरा बरसे  छम-छम-छम,

रौशनी में आँख  चुराई है।

पूस की जाड़ा बदन कंपाए,

गुदड़ी  से  जान बचाई  है।

फागुन मास की पुरवाई में,

संग-संग टहल लगाई है ।

तुम ही जानो कितनी सासें,

हमने साथ बिताई है ।

अंग-अंग  बदरंग हुआ अब,

घुटनों तक हमें सताई है ।

हम सबके कजरारे नयना ,

चश्में से होती दिखाई है ।

मुस्काने गुलाबी अधरों की,

अब बिना दंत शरमाई है ।

तुमसे नहीं शिकायत सजनी ,

तू ही जीवन भरपाई  है ।

तेरे स्नेह के महरम से हमने ,

दर्दों से मुक्ति पाई  है ।

पार लगा देना हे प्रभु तुम ,

संग सजनी परछाईं है ।

तुम ही जानो कितनी सासें ,

हमने साथ बिताई है ।


- शिवनन्दन सिंह

जमशेदपुर, झारखंड


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(2) जीवन सपनों का संसार

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जीवन है सपनों का संसार ,

बहुत सी नफरत, थोड़ा प्यार,

कौन है अपना, कौन पराया ,

समझ न पाया , मैं भरमाया ।

आजन्म चला यही व्यापार,

जीवन  है सपनों  का संसार।

जन्म-मरण के बीच की दूरी ,

सानंद नहीं होती है पूरी ,

रोग शोक है बारी - बारी ,

उमर बनी है कंटक - क्यारी ।

लोभ-क्षोभ से भरा बाजार ,

जीवन है सपनों का संसार।

मिथ्या, मोह, तृषा और माया ,

सुख के उपर है दु:ख की छाया,

छल, फरेव और बहु आघात ,

मन पीछे, धन का प्रणयपात ।

करता है दिल को  तार-तार ,

जीवन है सपनों का संसार।

स्वार्थ में सब पा रहे आनंद ,

बना जीवन हर पल निरानंद ,

काश!  प्रेम भरा हो संसार ,

ना रहे नफरत , भरा हो प्यार ।

है कठिन डगर एक स्वप्न द्वार।

जीवन है सपनों का संसार।


- शिवनन्दन सिंह

जमशेदपुर, झारखंड

1 comment:

  1. बहुत ही भावपूर्ण पंक्तियां।

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