यथार्थ - by Vishdhar Shankar
यथार्थ
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लोग भाग रहे हैं,
अपने-अपने
सपनों के पीछे आज।
मैं थका नहीं हूँ,
कुछ नमकीन हो गये हैं मेरे संघर्ष।
मैं सपने नहीं देखता,
क्योंकि मुझे नींद नहीं आती।
मैं सोया ही नहीं आज तक
यथार्थ की तपिश में,
संघर्षरत भट्टी में रोटी पका रहा हूँ।
पका नहीं है अब तक,
जब पक जाएगा
तब संघर्ष की सब्जी के साथ
रोटी खाऊँगा।
मीठी-मीठी रोटी
बड़ी स्वाद होती है इन रोटियों में,
फिर पानी पीकर सो जाऊँगा।
बड़ी अच्छी नींद भी आएगी,
तब सपने देखूँगा मैं भी
तुम्हारी तरह।
- विषधर शंकर
गया, बिहार
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