पढ़े लक्ष्मी देवी 'चेतना' जी की रचनाएँ ( Laxmi Devi 'Chetna' )


(1) कलम की धार

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जो ना करे तलवार,

वह कलम की धार करती हैं ।।

जो ना भेदे तीर कमान,

वह कलम की धार भेदती है।।

ना किसी मैदान की जरूरत,

ना कोई सेना सिपाही,

ये अकेले ही,

सारे संसार को बदल सकती है ।।

जला सकती है चिंगारी वहाँ,

जहाँ आग का वजूद ना हो।

सोए हुए अरमानों को,

फिर से जगा सकती है।।

थामा जिसने भी कलम को,

उसकी जिंदगी पल में बदली है।

हर युग में कलम ही,

नई क्रांति को जनम देती है।।

रचती है इतिहास,

प्रेम, चाहत, विश्वास लिखती है।

करे गुनगान किसी का,

किसी का उपहास लिखती है।।

कलम वह काम करे,

जहाँ कोई हथियार काम आए।

कलम वह शीतल जल है,

जो शोलो को भी शांत करती है।।

अजब है संगम कागज कलम दवात का,

जो तींनो हो एक साथ तो,

असंभव को भी संभव करती है।।


- लक्ष्मी देवी 'चेतना'

तिनसुकिया, असम


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(2) माँ

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मेरे जरा से खरोंच से, 

घर सर पर उठा लेती है, 

मुझे जीताने के लिए,

खुद हार जाती है ।

माँँ यूँ ही नहीं, माँ हो जाती है।। 


खून से सींचती है औलाद को,

पेट अपना काट कर हमें दुध पिलाती है।

माँ वह फौलाद है,

जो हमारे लिए रब से लड़ जाती है। 

माँँ यूँ ही नहीं, माँ हो जाती है।।


खुद भीगती है और हमें,

आँचल में छिपा लेती है।

रात-रात भर जागकर, 

हमे गहरी नींद सुलाती है। 

माँँ यूँ ही नहीं, माँ हो जाती है।। 


सेंकती है अपने अरमानो की रोटी,

मेहनत की आँच तेज करती है।

अपना साज सिंगार सब छोड़,

हमारी आँखों में भविष्य का आईना देखती हैं। 

माँँ यूँ ही नहीं, माँ हो जाती है।।


सह लेती है हर दर्द खुद ही,

हमें हर बुराई से महरुम रखती है।

आँखों में आँसू लिए,

जाने कैसे वह मुस्कुराती है।

माँँ यूँ ही नहीं, माँ हो जाती है।।


पशु पक्षी या इन्सान हो, 

माँ तो हर रूप में माँ होती है।

प्रसव वेदना सह कर, 

नई जीवन का सृजन करती है। 

माँँ यूँ ही नहीं, माँ हो जाती है।।


- लक्ष्मी देवी 'चेतना'

तिनसुकिया, असम

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