माँ ने मेरा एक स्वेटर बुना था - by Sukhpreet Singh "Sukhi"


माँ ने मेरा एक स्वेटर बुना था

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माँ ने मुझे मुझमें मुझसे बेहतर चुना था।

हाँ ! माँ  ने  मेरा एक  स्वेटर  बुना  था।।


वो अंगुलियों के बिलांग से मुझे नाप लेना,

वो  थक  कर  अचानक गहरी साँस लेना।

हर एक फंदे में सौ-सौ गुना प्यार गुना था,

हाँ !  माँ  ने  मेरा  एक  स्वेटर  बुना  था।।


वो कड़ाके सर्दी वो तेरा रात- रात जागना,

वो चश्मे  से  अश्कों  को बार-बार पोछना।

अंगुलियों में सलाख़ों से जैसे सृष्टि को गुना था,

हाँ !  माँ  ने   मेरा  एक  स्वेटर  बुना  था।।


पहन  जिसको  जहाँ  में इतराता था मैं,

माँ की झलक खुद में दिखलाता था मैं।

कहा किसने क्या मैंने कुछ ना सुना था,

हाँ ! माँ  ने  मेरा एक स्वेटर  बुना  था।।


पहन उसे कभी मेला, कभी बाजार,

कभी     स्कूल     जाता     था,

माँ की साँसों की गर्मी थी उसमें,

कि  मैं   सर्दी  भूल   जाता  था।

अपने  प्यार  के   जज्बातों   से,

माँ  ने  ऊन  को  भी   उना  था,

हाँ! माँ ने मेरा एक स्वेटर बुना था।।


माँ ने मुझे मुझमें मुझसे बेहतर चुना था।

हाँ ! माँ  ने  मेरा एक  स्वेटर  बुना  था।।


- सुखप्रीत सिंह "सुखी"
शाहजहाँपुर, उत्तर प्रदेश

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