रहमत - by Sandhya Tiwari


रहमत

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प्रभु मुझको कहाँ है भेजा,

अचरज भरा संसार है तेरा।

गर्भ में पहले बंद रखा,

आज़ाद कर दुनिया में भेजा।


नन्हा, अनभिज्ञ मैं प्राणी हूँ,

तेरी रहमत का मैं आदी हूँ।

खो न जाऊँ भूल-भुलैया में,

रखना मुझको अपने नैया में।।


उन्मुक्त गगन में घूमूँगा,

जीवन का रस मैं पाऊँगा।

अदभुत, विलक्षण सृष्टि का,

आनंद मैं खूब उठाऊँगा।।


नव जीवन की जो कृपा मिली,

जीने की मुझे आज़ादी मिली।

इसको न व्यर्थ गवाऊँगा,

नित सुमिर तुझे मैं जीऊँगा।।


सही गलत का ज्ञान मुझे देना,

सुविचार मेरे दिल में भरना।

कोई दाग ना इस जीवन में लगे,

रहमत अपनी बनाए रखना।।


- संध्या तिवारी

फरीदाबाद, हरियाणा

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