धरती माता की चित्कार (कविता) - by Chandan Keshri (चन्दन केशरी)


धरती माता की चित्कार

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धरती माता की संतानों, धरती माता रही पुकार।

सहन नहीं कर पाओगे तुम, धरती माता की चित्कार।।


पेड़ों को यूँ काटा तुमने, अपना महल बनाने को।

तुम हो कितने आधुनिक, दिखाना है जमाने को।

वृक्ष ही 'गर न रहे तो, कहाँ मिलेगा ऑक्सीजन?

ऑक्सीजन 'गर न मिले तो, बचेगा क्या तेरा तन?

प्रकृति से कर खिलवाड़, करो नहीं अपना संहार।

सहन नहीं कर पाओगे तुम, धरती माता की चित्कार।।


जब भी प्यास लगती तुमको, जल ग्रहण कर लेते हो।

जिसने प्यास बुझाई उसको, क्यों गंदा कर देते हो?

जो था कभी हरा-भरा, बन न जाए मरुस्थल।

करो इसपर भी विचार, कैसे जियोगे तुम कल?

प्रकृति का करते शोषण, है मानव तुम पर धिक्कार।

सहन नहीं कर पाओगे तुम, धरती माता की चित्कार।।


जो है ईश का उपहार, जिससे तेरा श्वसन है।

जिससे जग के सब प्राणी, जिससे तेरा जीवन है।

उस वायु को भी न छोड़ा, फैलाया है प्रदूषण।

थोड़ी-सी सुविधा मिली पर, त्रस्त होगा ये जीवन।

क्यों करते हो कर्म ऐसा, अब भी तो कर लो सुधार।

सहन नहीं कर पाओगे तुम, धरती माता की चित्कार।।


पर्यावरण बचाने को, जागरुक हो जन - जन।

बचाना है भविष्य तो, करना होगा वृक्षारोपण।

एकजुट हो कार्य करें हम, तब प्रदूषण भागेगा।

हर ओर होगी हरियाली, हर मानव जब जागेगा।

अगर जागोगे नहीं तुम, हल निकलेगा किस प्रकार?

सहन नहीं कर पाओगे तुम, धरती माता की चित्कार।।


- चन्दन केशरी

(पता :- झाझा, जमुई, बिहार)


2 comments:

  1. Please send the link or email id or whatsapp Number to post or send my poems.
    P L Semwal , Dehradun

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  2. May email ID - plsemwal@gmail.com

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