मत मारो मुझपर कुल्हाड़ी (कविता) - by Chandan Keshri (चन्दन केशरी)
मत मारो मुझपर कुल्हाड़ी
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बेजुबान वृक्ष पर भी, स्वार्थ की उठी कुल्हाड़ी,
पेड़ भी तब बोल पड़ा, सुनो बात सब नर-नारी।
मुझसे ही है जीवन तेरा, मुझसे ही है दुनिया सारी,
क्या बिगाड़ा मैंने तेरा, मत मारो मुझपर कुल्हाड़ी।।
मैंने ही तुमको दिया है, फूल, सब्जी और फल।
मेरे साथ तेरे जीवन का, सूरज भी जाएगा ढल।
मेरे बिन जियोगे कैसे, की है क्या इसकी तैयारी?
क्या बिगाड़ा मैंने तेरा, मत मारो मुझपर कुल्हाड़ी।।
काट लोगे तुम मुझको, कुर्सी मेरी बनाओगे।
कुर्सी तो मिल जाएगी, सुकून कहाँ से लाओगे?
चंद रुपये कमा तो लोगे, पर यह कर्म विनाशकारी।
क्या बिगाड़ा मैंने तेरा, मत मारो मुझपर कुल्हाड़ी।।
सूरज की भीषण गर्मी में, छाँव तुमको देता हूँ।
तुम भी धरती माँ के बेटे, मैं भी उनका बेटा हूँ।
काट मुझको बन जाओगे, भारी पाप के अधिकारी।
क्या बिगाड़ा मैंने तेरा, मत मारो मुझपर कुल्हाड़ी।।
मैं ही चिड़ियों का बसेरा, मैं ही करवाता बरसात।
मिट्टी कटाव से बचाता, मुझको ही तुम दोगे काट।
मैंने तुमको सब दिया है, क्यों करते हो तुम गद्दारी?
क्या बिगाड़ा मैंने तेरा, मत मारो मुझपर कुल्हाड़ी।।
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