शिक्षक दिवस और प्रश्न ( लघुकथा ) - by Chandan Keshri ( चन्दन केशरी )


शिक्षक दिवस और प्रश्न

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     शिक्षक दिवस आने में अभी एक सप्ताह का समय शेष था, लेकिन बच्चों ने इसकी तैयारियाँ आरंभ कर दी थी। विद्यालय से घर आने का समय हो अथवा कक्षा शुरु होने के पहले का समय, बच्चों में सिर्फ और सिर्फ शिक्षक दिवस की बातें ही चल रही थी। केक का ऑर्डर दिया है या नहीं, नास्ते में क्या-क्या रहेगा, कक्षा को कैसे सजाना है; यही सब बातें बच्चों के बीच होती रहती।


     इतने इंतज़ार के बाद आखिर शिक्षक दिवस का दिन आ ही गया। बच्चों के चेहरे की चमक उनके उत्साहित होने का प्रमाण दे रही थी। कुछ बच्चे तो आज घर से मोबाइल भी लाए थे और एक-दूसरे की फोटो खींच रहे थे। कक्षा को गुब्बारों से पूरी तरह से सजा दिया गया था।


     शिक्षक को बुलवाया गया। केक कटवाया गया। बच्चों ने शिक्षक के लिए कुछ तोहफ़े भी लाए थे, जो अत्यंत प्रसन्नता से उन्हें देते हुए एक-एक कर फोटो खिंचवा रहे थे। मोहन उनके लिए कोई तोहफ़ा नहीं लाया था। उसने शिक्षक के पास जाकर कहा, "मैंने जो कुछ भी सीखा है, आपकी ही देन है।" यह कहते हुए उसने शिक्षक के चरण स्पर्श किए। शिक्षक ने भी उसके सिर पर अपना हाथ रखते हुए सदा खुश रहने का आशीर्वाद दिया।


     दरवाजे पर खड़ा चपरासी यह सब देख रहा था और सोच रहा था कि एक ओर जहाँ बच्चे इस शिक्षक दिवस को एक मनोरंजन का रूप देकर तोहफ़े देते हुए फोटो खींचवा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर मोहन प्रणाम कर आशीर्वाद ले रहा है। उसके मस्तिष्क में एक साथ कई सारे प्रश्न गूँज रहे थे। वह सोच रहा था, "यह कैसी संस्कृति हो गई है कि शिक्षक को प्रणाम करने से ज्यादा फोटो खिंचवाना महत्वपूर्ण हो गया है? क्या मोहन को और बाकी बच्चों को बराबर आशीर्वाद मिला? क्या इतना खर्च करने से ही शिक्षक खुश होंगे? क्या शिक्षक दिवस इस प्रकार मनाया जाता है?"


     वह चपरासी ये सब सोच ही रहा था कि तभी एक विद्यार्थी ने उसे नास्ते का एक डब्बा दिया। उसके मन में फिर से एक प्रश्न आया। उसने सोचा, "क्या यह शिक्षक दिवस एक पिकनिक है?"


     तभी उसके कानों में अचानक एक तीव्र ध्वनि आई और उसका ध्यान उस ओर चला गया। विद्यार्थियों ने नाच-गाने की व्यवस्था भी की हुई थी और गाना बजाया जाने लगा। गाना बजते ही कुछ विद्यार्थी थिरकने लगे। शिक्षक वहाँ से निकल गए, साथ ही वह चपरासी भी वहाँ से जाने लगा। जाते-जाते भी उसके मन में केवल और केवल प्रश्न ही आ रहे थे। वह पुनः सोचने लगा, "क्या शिक्षक दिवस पर गाना बजाना उचित है? क्या इस प्रकार का गाना बजना चाहिए? क्या इन गानों पर नृत्य करना हमारी आधुनिकता को प्रदर्शित करने के लिए है?"


     प्रश्न, प्रश्न और प्रश्न ; प्रश्नों को तो जैसे अम्बार-सा लग गया था। प्रश्न कइयों पर था। प्रश्न था हमारी संस्कृति पर! प्रश्न था हमारे संस्कारों पर! प्रश्न था शिक्षक और विद्यार्थी के संबंधों पर! प्रश्न था हमारे विचारों पर! प्रश्न था... और बस प्रश्न ही था।


- चन्दन केशरी
(पता :- झाझा, जमुई, बिहार)

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